Bihar Election 2025 : नेता जी के एकदम खास एकदम वफादार ! जैसे की झबरुआ।
नेताजी के कैंपस में भारी भीड़ है। विराम किसी भी युद्ध का अंत है ऐसा नेताजी के सोशल मीडिया में फैला दिया गया और यह सन्देश भी दे दिया गया, अब बिहार चुनाव की तरफ रुख करना है।
लगभग बीस की संख्या में लोग बैठे हैं । यह रोज का कार्यक्रम है। दस - पंद्रह कुर्सी लगी है। लोग आते हैं , खाते हैं , भइया का गुणगान करते हैं और घर लौट आते हैं। यह लगभग शाम चार से रात के आठ - नव बजे तक का है। अभी छः बज चुका है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बात के बाद सीधे बिहार पर संवाद को मोड़ दिया गया है। कोई कह रहा है जात चलेगा तब भी , युवा चेहरा पर बात होगी तब भी , पैसा में भी कम हैं क्या ? बड़ी रूपया है। मने जिधर से स्क्रूटिनी हो सब में आगे हैं। टिकट के प्रबल दावेदार भइया हमार।
तो अब आगे क्या ?
लग जाइये और का।
सही में भइया? टिकट फ़ाइनल है न?
फ़ाइनल ! 100 % , हमको नहीं मिलेगा तो किसको मिलेगा? कोई है जी जिला में?
न इ बात तो है भइया , आपके टक्कर में कोई नहीं है.
इ सब चल ही रहा था कि हांफते हुए एक समर्पित कार्यकर्ता पंहुचा।
काहे जी? कुत्ता नियन काहे हांफ रहा है?
जवाब में दांत निपोर दिए। उ शाम में थोड़ा जॉगिंग हो जाता है बोलते हुए भाई साहब ने भर मुट्ठी काजू उठाइ अगल - बगल देखा और मुँह में डाल लिया।
अगड़ा - पिछड़ा पर इसबार जोड़ है ध्यान रहे भटकना न चाहिए मंटू बाबू।
न भटकेगा। एकदम चाप देना है। मंटू बाबू इतना ही बोले ही थे की, पिछड़ा का नेता प्रणाम भइया करता हुआ दरबार में प्रवेश कर रहा था।
नेताजी ने उसे भी कहा आपके ऊपर ही जिम्मेदारी है। बहाव में नहीं बहना है ऊपर देखना है।
बतक समर्पित कार्यकर्त्ता ने दूसरी दफा काजू का सेवन करते हुए चुनावी गणित समझाया।
"भइया आप आते हैं फॉरवर्ड से , सारा फॉरवर्ड आपको नेता मनाता है , अगर आपको चुनाव जीतना है तो बैकवर्ड साइड वाला भी वोट चाहिए। तो अगर बैकवर्ड वोट बैंक वाली पार्टी आपको टिकट दे देगी तो दोनों हाँथ में लड्डू होगा " जीत भी पक्की।"
नेताजी को भी यह गणित रास आई वो कुछ बोलने ही वाले थे तभी दबे जुबान मंटू बाबू ने इशारा किया मामला गड़बड़ा जायेगा , धैर्य रखिये धर्म वाला भी मौका है , जात से ऊपर का चीज है।
डैमेज कण्ट्रोल करते हुए नेताजी ने समर्पित कार्यकर्त्ता को बस इतना ही कहा " खाली कुत्तइ बतियाते हो। क्या अगड़ा - क्या पिछड़ा हम सब एक हैं और सबको मिलकर मुझे वोट देना है ताकि सबका कल्याण हो सके।
रात्रि का साढ़े आठ बज चुका है। लोग धीरे - धीरे निकल रहे हैं। सपर्पित कार्यकर्त्ता तीसरी बार काजू उठाते अपने दोस्त के साथ इस प्रश्न के साथ बाहर निकल रहा है " नेताजी हर बात में हमको कुत्ता काहे कह देते हैं हो।
भक्क बुड़बक एतना भी नहीं बुझाता! तुम नेता जी के एकदम खास हो, एकदम वफादार ! जैसे की झबरुआ।
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